समेट ले गए सब रहमतें कहाँ मेहमान
मकान काटता फिरता है मेज़बानों को
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किसे मजाल जो टोके मिरी उड़ानों को
बज़्म-ए-सुख़न को आप की दिल-गीर चल पड़े
झंकार है मौजों की बहते हुए पानी से
बारिश कैसी जादूगर है
नुमू की ख़ाक से उट्ठेगा फिर लहू मेरा
दिल की मौजों की तड़प मेरी सदा में आए
ओझल हुई नज़र से बे-बाल-ओ-पर गई है
सीने के बीच 'साक़िब' ऐसा है मरना जीना
ग़ज़ल में दर्द का जादू मुझी को होना था
घात
रस्ते की अंजान ख़ुशी है