जिसे दरपेश जुदाई हो उसे क्या मालूम
कौन सी बात को किस तरह बयाँ होना है
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इक बर्ग बर्ग दिन की ख़बर चाहिए मुझे
लरज़ लरज़ के दिल-ए-ना-तवाँ ठहर ही न जाए
कुछ तो ग़म-ख़ाना-ए-हस्ती में उजाला होता
किसे कहें कि रिफ़ाक़त का दाग़ है दिल पर
जाने वाले को कहाँ रोक सका है कोई
जू-ए-नग़्मात पे तस्वीर सी लर्ज़ां देखी
दर्स-ए-आदाब-ए-जुनूँ याद दिलाने वाले
जब हमें इज़्न तमाशा होगा
बुझी है आतिश-ए-रंग-ए-बहार आहिस्ता आहिस्ता
वो रंग उड़े हैं कुछ अब के बरस बहारों के
फ़क़त हर्फ़-ए-तमन्ना क्या है
अब और चलने का इस दिल में हौसला ही न था