क़ातिल की सारी साज़िशें नाकाम ही रहीं
चेहरा कुछ और खिल उठा ज़हराब गर पिया
Jaun Eliya
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लहू का आख़िरी क़तरा निचोड़ने पर भी
फ़िक्र-ए-अहल-ए-हुनर पे बैठी है
ज़ेहन और दिल में जो रहती है चुभन खुल जाए
वो जब देगा जो कुछ देगा देगा अपने वालों को
फलदार दरख़्तों ने रिझाया तो मुझे भी
ख़बर शाकी है
तुम्हारे दिल में जो ग़म बसा है तो मैं कहाँ हूँ
चराग़ों में अँधेरा है अँधेरे में उजाले हैं
आज-कल तो सब के सब टीवी के दीवाने हुए
नवेद-ए-सफ़र
धानी सुरमई सब्ज़ गुलाबी जैसे माँ का आँचल शाम
किस को फ़ुर्सत कौन पढ़ेगा चेहरे जैसा सच्चा सच