फलदार दरख़्तों ने रिझाया तो मुझे भी
आज़ाद परिंदों के लिए शाख़-ओ-समर क्या
Anwar Masood
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Wasi Shah
Allama Iqbal
Gulzar
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Rahat Indori
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किस को फ़ुर्सत कौन पढ़ेगा चेहरे जैसा सच्चा सच
हर शख़्स को गुमान कि मंज़िल नहीं है दूर
इक़रार किसी दिन है तो इंकार किसी दिन
ज़ेहन और दिल में जो रहती है चुभन खुल जाए
नवेद-ए-सफ़र
फल दरख़्तों से गिरे थे आँधियों में थाल भर
धानी सुरमई सब्ज़ गुलाबी जैसे माँ का आँचल शाम
आज-कल तो सब के सब टीवी के दीवाने हुए
क़ातिल की सारी साज़िशें नाकाम ही रहीं
ख़बर शाकी है
बुरा हो कर भी वो अच्छा बहुत है