आज-कल तो सब के सब टीवी के दीवाने हुए
वर्ना बच्चे तो लिया करते थे पागल के मज़े
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धानी सुरमई सब्ज़ गुलाबी जैसे माँ का आँचल शाम
फल दरख़्तों से गिरे थे आँधियों में थाल भर
चराग़ों में अँधेरा है अँधेरे में उजाले हैं
इक़रार किसी दिन है तो इंकार किसी दिन
ज़ेहन और दिल में जो रहती है चुभन खुल जाए
नवेद-ए-सफ़र
ख़बर शाकी है
फलदार दरख़्तों ने रिझाया तो मुझे भी
क़ातिल की सारी साज़िशें नाकाम ही रहीं
वो जब देगा जो कुछ देगा देगा अपने वालों को
किस को फ़ुर्सत कौन पढ़ेगा चेहरे जैसा सच्चा सच