हर शख़्स को गुमान कि मंज़िल नहीं है दूर
ये तो बताइए कि पिता किस के पास है
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चराग़ों में अँधेरा है अँधेरे में उजाले हैं
अज़ाब होती हैं अक्सर शबाब की घड़ियाँ
इक़रार किसी दिन है तो इंकार किसी दिन
ज़ेहन और दिल में जो रहती है चुभन खुल जाए
आज-कल तो सब के सब टीवी के दीवाने हुए
वो जब देगा जो कुछ देगा देगा अपने वालों को
तुम्हारे दिल में जो ग़म बसा है तो मैं कहाँ हूँ
फ़िक्र-ए-अहल-ए-हुनर पे बैठी है
किस को फ़ुर्सत कौन पढ़ेगा चेहरे जैसा सच्चा सच
धानी सुरमई सब्ज़ गुलाबी जैसे माँ का आँचल शाम
ख़बर शाकी है