वही आँसू वही माज़ी के क़िस्से
जिसे देखो कटे को काटता है
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समुंदर है कोई आँखों में शायद
अब उजड़ने के हम न बसने के
हादसात अब के सफ़र में नए ढब से आए
तिरा लहज़ा वही तलवार जैसा था
मैं सारे फ़ासले तय कर चुका हूँ
उतर जाता तो रुस्वाई बहुत होती
हमें रास आनी है राहों की गठरी
चाल अपनी अदा से चलते हैं
और कुछ देर ग़म नज़र में रख
आइने में है फिर वही सूरत
बार-ए-दीगर ये फ़लसफ़े देखूँ