आशिक़ी में बहुत ज़रूरी है
बेवफ़ाई कभी कभी करना
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मिरी ग़ज़ल की तरह उस की भी हुकूमत है
शो'ला-ए-गुल गुलाब शो'ला क्या
मुझ से क्या बात लिखानी है कि अब मेरे लिए
अजीब शख़्स है नाराज़ हो के हँसता है
है अजीब शहर की ज़िंदगी न सफ़र रहा न क़याम है
तुम्हें ज़रूर कोई चाहतों से देखेगा
कहाँ आँसुओं की ये सौग़ात होगी
सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा
पहचान अपनी हम ने मिटाई है इस तरह
शबनम के आँसू फूल पर ये तो वही क़िस्सा हुआ
पिछली रात की नर्म चाँदनी शबनम की ख़ुनकी से रचा है