आँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा
कश्ती के मुसाफ़िर ने समुंदर नहीं देखा
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पत्थर के जिगर वालो ग़म में वो रवानी है
न तुम होश में हो न हम होश में हैं
कभी तो आसमाँ से चाँद उतरे जाम हो जाए
एक औरत से वफ़ा करने का ये तोहफ़ा मिला
जब सहर चुप हो हँसा लो हम को
इतनी मिलती है मिरी ग़ज़लों से सूरत तेरी
ये शबनमी लहजा है आहिस्ता ग़ज़ल पढ़ना
ख़ुदा हम को ऐसी ख़ुदाई न दे
नज़र से गुफ़्तुगू ख़ामोश लब तुम्हारी तरह
तुम्हारे घर के सभी रास्तों को काट गई
हसीं तो और हैं लेकिन कोई कहाँ तुझ सा