इतनी मिलती है मिरी ग़ज़लों से सूरत तेरी
लोग तुझ को मिरा महबूब समझते होंगे
Wasi Shah
Rahat Indori
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
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Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Anwar Masood
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हम दिल्ली भी हो आए हैं लाहौर भी घूमे
है अजीब शहर की ज़िंदगी न सफ़र रहा न क़याम है
उड़ने दो परिंदों को अभी शोख़ हवा में
वो चाँदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है
कभी यूँ भी आ मिरी आँख में कि मिरी नज़र को ख़बर न हो
मिरी ज़िंदगी भी मिरी नहीं ये हज़ार ख़ानों में बट गई
सोचा नहीं अच्छा बुरा देखा सुना कुछ भी नहीं
काग़ज़ में दब के मर गए कीड़े किताब के
न जाने कब तिरे दिल पर नई सी दस्तक हो
मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला
दुश्मनी का सफ़र इक क़दम दो क़दम
सब लोग अपने अपने ख़ुदाओं को लाए थे