जी बहुत चाहता है सच बोलें
क्या करें हौसला नहीं होता
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मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला
ये ज़ाफ़रानी पुलओवर उसी का हिस्सा है
कहीं चाँद राहों में खो गया कहीं चाँदनी भी भटक गई
बड़े लोगों से मिलने में हमेशा फ़ासला रखना
पत्थर मुझे कहता है मिरा चाहने वाला
भूल शायद बहुत बड़ी कर ली
काग़ज़ में दब के मर गए कीड़े किताब के
मैं हर हाल में मुस्कुराता रहूँगा
कभी तो आसमाँ से चाँद उतरे जाम हो जाए
दिल में इक तस्वीर छुपी थी आन बसी है आँखों में
सौ ख़ुलूस बातों में सब करम ख़यालों में
फिर याद बहुत आएगी ज़ुल्फ़ों की घनी शाम