हसीं तो और हैं लेकिन कोई कहाँ तुझ सा
जो दिल जलाए बहुत फिर भी दिलरुबा ही लगे
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तुम अभी शहर में क्या नए आए हो
अज़्मतें सब तिरी ख़ुदाई की
वो इंतिज़ार की चौखट पे सो गया होगा
जिस दिन से चला हूँ मिरी मंज़िल पे नज़र है
उतर भी आओ कभी आसमाँ के ज़ीने से
अगर फ़ुर्सत मिले पानी की तहरीरों को पढ़ लेना
फूल बरसे कहीं शबनम कहीं गौहर बरसे
मिरे साथ चलने वाले तुझे क्या मिला सफ़र में
पिछली रात की नर्म चाँदनी शबनम की ख़ुनकी से रचा है
तुम्हारे घर के सभी रास्तों को काट गई
मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला