अगर फ़ुर्सत मिले पानी की तहरीरों को पढ़ लेना
हर इक दरिया हज़ारों साल का अफ़्साना लिखता है
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गले में उस के ख़ुदा की अजीब बरकत है
वो ग़ज़ल वालों का उस्लूब समझते होंगे
हम दिल्ली भी हो आए हैं लाहौर भी घूमे
सोचा नहीं अच्छा बुरा देखा सुना कुछ भी नहीं
सोए कहाँ थे आँखों ने तकिए भिगोए थे
दिल की बस्ती पुरानी दिल्ली है
यारो नए मौसम ने ये एहसान किए हैं
तुम मोहब्बत को खेल कहते हो
आशिक़ी में बहुत ज़रूरी है
सौ ख़ुलूस बातों में सब करम ख़यालों में
कभी तो आसमाँ से चाँद उतरे जाम हो जाए
लोबान में चिंगारी जैसे कोई रख जाए