अच्छा तुम्हारे शहर का दस्तूर हो गया
जिस को गले लगा लिया वो दूर हो गया
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मुझे मालूम है उस का ठिकाना फिर कहाँ होगा
कहाँ आँसुओं की ये सौग़ात होगी
वो चाँदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है
चाय की प्याली में नीली टेबलेट घोली
मान मौसम का कहा छाई घटा जाम उठा
वो इंतिज़ार की चौखट पे सो गया होगा
सर-ए-राह कुछ भी कहा नहीं कभी उस के घर मैं गया नहीं
तहज़ीब के लिबास उतर जाएँगे जनाब
हाथ में चाँद जहाँ आया मुक़द्दर चमका
मैं जिस की आँख का आँसू था उस ने क़द्र न की
वो ग़ज़ल वालों का उस्लूब समझते होंगे
न जाने कब तिरे दिल पर नई सी दस्तक हो