हाथ में चाँद जहाँ आया मुक़द्दर चमका
सब बदल जाएगा क़िस्मत का लिखा जाम उठा
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चराग़ों को आँखों में महफ़ूज़ रखना
मैं बोलता हूँ तो इल्ज़ाम है बग़ावत का
कभी मैं अपने हाथों की लकीरों से नहीं उलझा
शबनम के आँसू फूल पर ये तो वही क़िस्सा हुआ
परखना मत परखने में कोई अपना नहीं रहता
मोहब्बत अदावत वफ़ा बे-रुख़ी
लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में
ख़ानदानी रिश्तों में अक्सर रक़ाबत है बहुत
दिल की बस्ती पुरानी दिल्ली है
है अजीब शहर की ज़िंदगी न सफ़र रहा न क़याम है
कहाँ आँसुओं की ये सौग़ात होगी