तुम अभी शहर में क्या नए आए हो
रुक गए राह में हादसा देख कर
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न उदास हो न मलाल कर किसी बात का न ख़याल कर
न तुम होश में हो न हम होश में हैं
कई साल से कुछ ख़बर ही नहीं
कभी मैं अपने हाथों की लकीरों से नहीं उलझा
हज़ारों शेर मेरे सो गए काग़ज़ की क़ब्रों में
दिल उजड़ी हुई एक सराए की तरह है
कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी
अगर फ़ुर्सत मिले पानी की तहरीरों को पढ़ लेना
न जी भर के देखा न कुछ बात की
ये परिंदे भी खेतों के मज़दूर हैं
कहाँ आँसुओं की ये सौग़ात होगी
उदास आँखों से आँसू नहीं निकलते हैं