तुम मोहब्बत को खेल कहते हो
हम ने बर्बाद ज़िंदगी कर ली
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अब तो अँगारों के लब चूम के सो जाएँगे
मुझे मालूम है उस का ठिकाना फिर कहाँ होगा
कभी मैं अपने हाथों की लकीरों से नहीं उलझा
पिछली रात की नर्म चाँदनी शबनम की ख़ुनकी से रचा है
ये चराग़ बे-नज़र है ये सितारा बे-ज़बाँ है
फूल बरसे कहीं शबनम कहीं गौहर बरसे
मुझे लगता है दिल खिंच कर चला आता है हाथों पर
अच्छा तुम्हारे शहर का दस्तूर हो गया
ये शबनमी लहजा है आहिस्ता ग़ज़ल पढ़ना
जिस पर हमारी आँख ने मोती बिछाए रात भर
फ़लक से चाँद सितारों से जाम लेना है
अभी राह में कई मोड़ हैं कोई आएगा कोई जाएगा