अजब चराग़ हूँ दिन रात जलता रहता हूँ
मैं थक गया हूँ हवा से कहो बुझाए मुझे
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न जी भर के देखा न कुछ बात की
रोने वालों ने उठा रक्खा था घर सर पर मगर
पत्थर के जिगर वालो ग़म में वो रवानी है
जी बहुत चाहता है सच बोलें
हमारे पास तो आओ बड़ा अंधेरा है
हमारा दिल सवेरे का सुनहरा जाम हो जाए
काग़ज़ में दब के मर गए कीड़े किताब के
तहज़ीब के लिबास उतर जाएँगे जनाब
ख़ुदा हम को ऐसी ख़ुदाई न दे
हज़ारों शेर मेरे सो गए काग़ज़ की क़ब्रों में
मुझे मालूम है उस का ठिकाना फिर कहाँ होगा
मुझे लगता है दिल खिंच कर चला आता है हाथों पर