अहबाब भी ग़ैरों की अदा सीख गए हैं
आते हैं मगर दिल को दुखाने नहीं आते
Gulzar
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सोए कहाँ थे आँखों ने तकिए भिगोए थे
मंदिर गए मस्जिद गए पीरों फ़क़ीरों से मिले
गुफ़्तुगू उन से रोज़ होती है
पहला सा वो ज़ोर नहीं है मेरे दुख की सदाओं में
बे-वक़्त अगर जाऊँगा सब चौंक पड़ेंगे
मुझे मालूम है उस का ठिकाना फिर कहाँ होगा
तिरी आरज़ू तिरी जुस्तुजू में भटक रहा था गली गली
उदास रात है कोई तो ख़्वाब दे जाओ
दिल की बस्ती पुरानी दिल्ली है
उन्हीं रास्तों ने जिन पर कभी तुम थे साथ मेरे
शोहरत की बुलंदी भी पल भर का तमाशा है
कोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक से