बहुत दिनों से मिरे साथ थी मगर कल शाम
मुझे पता चला वो कितनी ख़ूबसूरत है
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नाम पानी पे लिखने से क्या फ़ाएदा
ख़ुदा ऐसे एहसास का नाम है
काग़ज़ में दब के मर गए कीड़े किताब के
वो माथा का मतला हो कि होंठों के दो मिसरे
सब लोग अपने अपने ख़ुदाओं को लाए थे
महलों में हम ने कितने सितारे सजा दिए
सर-ए-राह कुछ भी कहा नहीं कभी उस के घर मैं गया नहीं
जी बहुत चाहता है सच बोलें
सौ ख़ुलूस बातों में सब करम ख़यालों में
मुझ से बिछड़ के ख़ुश रहते हो
हम भी दरिया हैं हमें अपना हुनर मालूम है
इजाज़त हो तो मैं इक झूट बोलूँ