दुश्मनी का सफ़र इक क़दम दो क़दम
तुम भी थक जाओगे हम भी थक जाएँगे
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तुम मोहब्बत को खेल कहते हो
उदासी आसमाँ है दिल मिरा कितना अकेला है
सर से पा तक वो गुलाबों का शजर लगता है
मेरी आँखों में तिरे प्यार का आँसू आए
कितनी सच्चाई से मुझ से ज़िंदगी ने कह दिया
ख़ून पत्तों पे जमा हो जैसे
वो सूरत गर्द-ए-ग़म में छुप गई हो
हँसी मासूम सी बच्चों की कापी में इबारत सी
मुख़ालिफ़त से मिरी शख़्सियत सँवरती है
उसे पाक नज़रों से चूमना भी इबादतों में शुमार है
मंदिर गए मस्जिद गए पीरों फ़क़ीरों से मिले
नाम पानी पे लिखने से क्या फ़ाएदा