इक शाम के साए तले बैठे रहे वो देर तक
आँखों से की बातें बहुत मुँह से कहा कुछ भी नहीं
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अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जाएगा
मेरे दिल की राख कुरेद मत इसे मुस्कुरा के हवा न दे
इस शहर के बादल तिरी ज़ुल्फ़ों की तरह हैं
वो बड़ा रहीम ओ करीम है मुझे ये सिफ़त भी अता करे
जब सहर चुप हो हँसा लो हम को
कोई फूल धूप की पत्तियों में हरे रिबन से बँधा हुआ
मुसाफ़िर हैं हम भी मुसाफ़िर हो तुम भी
सँवार नोक-पलक अबरुओं में ख़म कर दे
मैं ने दिन रात ख़ुदा से ये दुआ माँगी थी
अजीब रात थी कल तुम भी आ के लौट गए
मोहब्बत एक ख़ुशबू है हमेशा साथ चलती है
कोई बादल हो तो थम जाए मगर अश्क मिरे