घर नया बर्तन नए कपड़े नए
इन पुराने काग़ज़ों का क्या करें
Mir Taqi Mir
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Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
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ये ज़र्द पत्तों की बारिश मिरा ज़वाल नहीं
तुम मोहब्बत को खेल कहते हो
सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा
बड़े ताजिरों की सताई हुई
ज़र्रों में कुनमुनाती हुई काएनात हूँ
कहाँ आँसुओं की ये सौग़ात होगी
परखना मत परखने में कोई अपना नहीं रहता
सब लोग अपने अपने ख़ुदाओं को लाए थे
पिछली रात की नर्म चाँदनी शबनम की ख़ुनकी से रचा है
बे-तहाशा सी ला-उबाली हँसी
सौ ख़ुलूस बातों में सब करम ख़यालों में
तुम्हारे घर के सभी रास्तों को काट गई