घरों पे नाम थे नामों के साथ ओहदे थे
बहुत तलाश किया कोई आदमी न मिला
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लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में
मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला
आशिक़ी में बहुत ज़रूरी है
उसे पाक नज़रों से चूमना भी इबादतों में शुमार है
पहचान अपनी हम ने मिटाई है इस तरह
मैं जिस की आँख का आँसू था उस ने क़द्र न की
इजाज़त हो तो मैं इक झूट बोलूँ
अगर फ़ुर्सत मिले पानी की तहरीरों को पढ़ लेना
वो अपने घर चला गया अफ़्सोस मत करो
फूलों में ग़ज़ल रखना ये रात की रानी है
मेरी आँख के तारे अब न देख पाओगे
मुद्दत से इक लड़की के रुख़्सार की धूप नहीं आई