हँसो आज इतना कि इस शोर में
सदा सिसकियों की सुनाई न दे
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कोई बादल हो तो थम जाए मगर अश्क मिरे
हम दिल्ली भी हो आए हैं लाहौर भी घूमे
सोए कहाँ थे आँखों ने तकिए भिगोए थे
मुझे लगता है दिल खिंच कर चला आता है हाथों पर
कभी यूँ भी आ मिरी आँख में कि मिरी नज़र को ख़बर न हो
अज़्मतें सब तिरी ख़ुदाई की
ख़ानदानी रिश्तों में अक्सर रक़ाबत है बहुत
फिर याद बहुत आएगी ज़ुल्फ़ों की घनी शाम
यहाँ एक बच्चे के ख़ून से जो लिखा हुआ है उसे पढ़ें
मेरी आँख के तारे अब न देख पाओगे
मैं यूँ भी एहतियातन उस गली से कम गुज़रता हूँ
मैं जिस की आँख का आँसू था उस ने क़द्र न की