इस शहर के बादल तिरी ज़ुल्फ़ों की तरह हैं
ये आग लगाते हैं बुझाने नहीं आते
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तिरी आरज़ू तिरी जुस्तुजू में भटक रहा था गली गली
कौन आया रास्ते आईना-ख़ाने हो गए
कहाँ आँसुओं की ये सौग़ात होगी
वो माथा का मतला हो कि होंठों के दो मिसरे
नए दौर के नए ख़्वाब हैं नए मौसमों के गुलाब हैं
उस की आँखों को ग़ौर से देखो
न तुम होश में हो न हम होश में हैं
तहज़ीब के लिबास उतर जाएँगे जनाब
इक परी के साथ मौजों पर टहलता रात को
वो बड़ा रहीम ओ करीम है मुझे ये सिफ़त भी अता करे
मिरी ज़बाँ पे नए ज़ाइक़ों के फल लिख दे
तुम्हारे साथ ये मौसम फ़रिश्तों जैसा था