इजाज़त हो तो मैं इक झूट बोलूँ
मुझे दुनिया से नफ़रत हो गई है
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फूल बरसे कहीं शबनम कहीं गौहर बरसे
मान मौसम का कहा छाई घटा जाम उठा
आहन में ढलती जाएगी इक्कीसवीं सदी
शबनम के आँसू फूल पर ये तो वही क़िस्सा हुआ
वो शख़्स जिस को दिल ओ जाँ से बढ़ के चाहा था
कभी मैं अपने हाथों की लकीरों से नहीं उलझा
अभी राह में कई मोड़ हैं कोई आएगा कोई जाएगा
है अजीब शहर की ज़िंदगी न सफ़र रहा न क़याम है
मोहब्बत अदावत वफ़ा बे-रुख़ी
कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी
वो माथा का मतला हो कि होंठों के दो मिसरे
मैं ने दिन रात ख़ुदा से ये दुआ माँगी थी