कई साल से कुछ ख़बर ही नहीं
कहाँ दिन गुज़ारा कहाँ रात की
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ज़र्रों में कुनमुनाती हुई काएनात हूँ
हमारे पास तो आओ बड़ा अंधेरा है
मान मौसम का कहा छाई घटा जाम उठा
दुआ करो कि ये पौदा सदा हरा ही लगे
आँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा
वो चाँदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है
अहबाब भी ग़ैरों की अदा सीख गए हैं
ख़ून पत्तों पे जमा हो जैसे
सोचा नहीं अच्छा बुरा देखा सुना कुछ भी नहीं
अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जाएगा
आशिक़ी में बहुत ज़रूरी है