मैं चाहता हूँ कि तुम ही मुझे इजाज़त दो
तुम्हारी तरह से कोई गले लगाए मुझे
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तिरी आरज़ू तिरी जुस्तुजू में भटक रहा था गली गली
शोहरत की बुलंदी भी पल भर का तमाशा है
ये शबनमी लहजा है आहिस्ता ग़ज़ल पढ़ना
कोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक से
तहज़ीब के लिबास उतर जाएँगे जनाब
ये परिंदे भी खेतों के मज़दूर हैं
अजीब शख़्स है नाराज़ हो के हँसता है
सँवार नोक-पलक अबरुओं में ख़म कर दे
पहली बार नज़रों ने चाँद बोलते देखा
वो इंतिज़ार की चौखट पे सो गया होगा
उदास आँखों से आँसू नहीं निकलते हैं
हम दिल्ली भी हो आए हैं लाहौर भी घूमे