मेरी आँख के तारे अब न देख पाओगे
रात के मुसाफ़िर थे खो गए उजालों में
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ये ज़र्द पत्तों की बारिश मिरा ज़वाल नहीं
न उदास हो न मलाल कर किसी बात का न ख़याल कर
हम ने तो बाज़ार में दुनिया बेची और ख़रीदी है
पहली बार नज़रों ने चाँद बोलते देखा
इतनी मिलती है मिरी ग़ज़लों से सूरत तेरी
सोचा नहीं अच्छा बुरा देखा सुना कुछ भी नहीं
मिरी ज़िंदगी भी मिरी नहीं ये हज़ार ख़ानों में बट गई
वो सूरत गर्द-ए-ग़म में छुप गई हो
फिर से ख़ुदा बनाएगा कोई नया जहाँ
अजीब रात थी कल तुम भी आ के लौट गए
अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जाएगा
वो चाँदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है