मुझे इश्तिहार सी लगती हैं ये मोहब्बतों की कहानियाँ
जो कहा नहीं वो सुना करो जो सुना नहीं वो कहा करो
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चमक रही है परों में उड़ान की ख़ुशबू
इजाज़त हो तो मैं इक झूट बोलूँ
भूल शायद बहुत बड़ी कर ली
किसी की याद में पलकें ज़रा भिगो लेते
शो'ला-ए-गुल गुलाब शो'ला क्या
ज़र्रों में कुनमुनाती हुई काएनात हूँ
कहाँ आँसुओं की ये सौग़ात होगी
कभी तो शाम ढले अपने घर गए होते
सात संदूक़ों में भर कर दफ़्न कर दो नफ़रतें
उस ने छू कर मुझे पत्थर से फिर इंसान किया
दुश्मनी का सफ़र इक क़दम दो क़दम
किसी ने चूम के आँखों को ये दुआ दी थी