मुझे लगता है दिल खिंच कर चला आता है हाथों पर
तुझे लिक्खूँ तो मेरी उँगलियाँ ऐसी धड़कती हैं
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सर-ए-राह कुछ भी कहा नहीं कभी उस के घर मैं गया नहीं
पत्थर मुझे कहता है मिरा चाहने वाला
मुसाफ़िर के रस्ते बदलते रहे
चमक रही है परों में उड़ान की ख़ुशबू
बड़े ताजिरों की सताई हुई
तुम्हारे घर के सभी रास्तों को काट गई
ख़ुदा हम को ऐसी ख़ुदाई न दे
बहुत अजीब है ये क़ुर्बतों की दूरी भी
लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में
मोहब्बत एक ख़ुशबू है हमेशा साथ चलती है
तुम मुझे छोड़ के जाओगे तो मर जाऊँगा
रेत भरी है इन आँखों में आँसू से तुम धो लेना