न जाने कब तिरे दिल पर नई सी दस्तक हो
मकान ख़ाली हुआ है तो कोई आएगा
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मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला
तुम्हारे साथ ये मौसम फ़रिश्तों जैसा था
रात तेरी यादों ने दिल को इस तरह छेड़ा
शबनम के आँसू फूल पर ये तो वही क़िस्सा हुआ
मैं जब सो जाऊँ इन आँखों पे अपने होंट रख देना
हँसो आज इतना कि इस शोर में
ख़ून पत्तों पे जमा हो जैसे
ये फूल मुझे कोई विरासत में मिले हैं
मिरी ज़िंदगी भी मिरी नहीं ये हज़ार ख़ानों में बट गई
सर-ए-राह कुछ भी कहा नहीं कभी उस के घर मैं गया नहीं
मैं तुम को भूल भी सकता हूँ इस जहाँ के लिए
हाथ में चाँद जहाँ आया मुक़द्दर चमका