न जी भर के देखा न कुछ बात की
बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की
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मैं चाहता हूँ कि तुम ही मुझे इजाज़त दो
ख़ानदानी रिश्तों में अक्सर रक़ाबत है बहुत
ये फूल मुझे कोई विरासत में मिले हैं
मुद्दत से इक लड़की के रुख़्सार की धूप नहीं आई
ख़ुदा ऐसे एहसास का नाम है
पत्थर के जिगर वालो ग़म में वो रवानी है
कभी यूँ भी आ मिरी आँख में कि मिरी नज़र को ख़बर न हो
नए दौर के नए ख़्वाब हैं नए मौसमों के गुलाब हैं
मेरे दिल की राख कुरेद मत इसे मुस्कुरा के हवा न दे
पहली बार नज़रों ने चाँद बोलते देखा
सुनाते हैं मुझे ख़्वाबों की दास्ताँ अक्सर
जिस दिन से चला हूँ मिरी मंज़िल पे नज़र है