फिर याद बहुत आएगी ज़ुल्फ़ों की घनी शाम
जब धूप में साया कोई सर पर न मिलेगा
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फ़लक से चाँद सितारों से जाम लेना है
शबनम के आँसू फूल पर ये तो वही क़िस्सा हुआ
शो'ला-ए-गुल गुलाब शो'ला क्या
मेरे सीने पर वो सर रक्खे हुए सोता रहा
कोई फूल सा हाथ काँधे पे था
जिस दिन से चला हूँ मिरी मंज़िल पे नज़र है
उदास आँखों से आँसू नहीं निकलते हैं
हँसो आज इतना कि इस शोर में
हमारा दिल सवेरे का सुनहरा जाम हो जाए
आशिक़ी में बहुत ज़रूरी है
मुसाफ़िर हैं हम भी मुसाफ़िर हो तुम भी