प्यार ही प्यार है सब लोग बराबर हैं यहाँ
मय-कदे में कोई छोटा न बड़ा जाम उठा
Habib Jalib
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Wasi Shah
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सर-ए-राह कुछ भी कहा नहीं कभी उस के घर मैं गया नहीं
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
जी बहुत चाहता है सच बोलें
न उदास हो न मलाल कर किसी बात का न ख़याल कर
ख़ून पत्तों पे जमा हो जैसे
नए दौर के नए ख़्वाब हैं नए मौसमों के गुलाब हैं
मिरी नज़र में ख़ाक तेरे आइने पे गर्द है
दिल उजड़ी हुई एक सराए की तरह है
हम दिल्ली भी हो आए हैं लाहौर भी घूमे
उस ने छू कर मुझे पत्थर से फिर इंसान किया
अज़्मतें सब तिरी ख़ुदाई की
मुझे इश्तिहार सी लगती हैं ये मोहब्बतों की कहानियाँ