रात का इंतिज़ार कौन करे
आज कल दिन में क्या नहीं होता
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रोने वालों ने उठा रक्खा था घर सर पर मगर
मिरी ग़ज़ल की तरह उस की भी हुकूमत है
मोहब्बत अदावत वफ़ा बे-रुख़ी
नाम पानी पे लिखने से क्या फ़ाएदा
मैं जिस की आँख का आँसू था उस ने क़द्र न की
ख़ुदा हम को ऐसी ख़ुदाई न दे
मुझे लगता है दिल खिंच कर चला आता है हाथों पर
कभी मैं अपने हाथों की लकीरों से नहीं उलझा
जब सहर चुप हो हँसा लो हम को
तुम्हारे घर के सभी रास्तों को काट गई
मुझ से क्या बात लिखानी है कि अब मेरे लिए
वो इंतिज़ार की चौखट पे सो गया होगा