रोने वालों ने उठा रक्खा था घर सर पर मगर
उम्र भर का जागने वाला पड़ा सोता रहा
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जी बहुत चाहता है सच बोलें
तुम मुझे छोड़ के जाओगे तो मर जाऊँगा
सात संदूक़ों में भर कर दफ़्न कर दो नफ़रतें
उन्हीं रास्तों ने जिन पर कभी तुम थे साथ मेरे
नज़र से गुफ़्तुगू ख़ामोश लब तुम्हारी तरह
न तुम होश में हो न हम होश में हैं
ये ज़ाफ़रानी पुलओवर उसी का हिस्सा है
सोए कहाँ थे आँखों ने तकिए भिगोए थे
लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में
उदास रात है कोई तो ख़्वाब दे जाओ
अच्छा तुम्हारे शहर का दस्तूर हो गया
कभी यूँ भी आ मिरी आँख में कि मिरी नज़र को ख़बर न हो