तुम्हारे साथ ये मौसम फ़रिश्तों जैसा है
तुम्हारे बा'द ये मौसम बहुत सताएगा
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वो चाँदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है
एक औरत से वफ़ा करने का ये तोहफ़ा मिला
दिन में परियों की कोई कहानी न सुन
जिस दिन से चला हूँ मिरी मंज़िल पे नज़र है
ज़र्रों में कुनमुनाती हुई काएनात हूँ
गले में उस के ख़ुदा की अजीब बरकत है
मैं चाहता हूँ कि तुम ही मुझे इजाज़त दो
कितनी सच्चाई से मुझ से ज़िंदगी ने कह दिया
वो इंतिज़ार की चौखट पे सो गया होगा
पत्थर मुझे कहता है मिरा चाहने वाला
हक़ीक़तों में ज़माना बहुत गुज़ार चुके
मैं कब तन्हा हुआ था याद होगा