तुम्हारे साथ ये मौसम फ़रिश्तों जैसा था
तुम्हारे बा'द ये मौसम बहुत सताएगा
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वो माथा का मतला हो कि होंठों के दो मिसरे
अजीब रात थी कल तुम भी आ के लौट गए
किसी की याद में पलकें ज़रा भिगो लेते
पत्थर मुझे कहता है मिरा चाहने वाला
पहचान अपनी हम ने मिटाई है इस तरह
हँसी मासूम सी बच्चों की कापी में इबारत सी
ये शबनमी लहजा है आहिस्ता ग़ज़ल पढ़ना
मिरी नज़र में ख़ाक तेरे आइने पे गर्द है
तिरी आरज़ू तिरी जुस्तुजू में भटक रहा था गली गली
न जाने कब तिरे दिल पर नई सी दस्तक हो
वो चेहरा किताबी रहा सामने
महलों में हम ने कितने सितारे सजा दिए