तुम्हें ज़रूर कोई चाहतों से देखेगा
मगर वो आँखें हमारी कहाँ से लाएगा
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दुआ करो कि ये पौदा सदा हरा ही लगे
उड़ने दो परिंदों को अभी शोख़ हवा में
बहुत अजीब है ये क़ुर्बतों की दूरी भी
प्यार की नई दस्तक दिल पे फिर सुनाई दी
हम तो कुछ देर हँस भी लेते हैं
मुसाफ़िर हैं हम भी मुसाफ़िर हो तुम भी
दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे
कोई बादल हो तो थम जाए मगर अश्क मिरे
तारों भरी पलकों की बरसाई हुई ग़ज़लें
उदास आँखों से आँसू नहीं निकलते हैं
अच्छा तुम्हारे शहर का दस्तूर हो गया
परखना मत परखने में कोई अपना नहीं रहता