उदास आँखों से आँसू नहीं निकलते हैं
ये मोतियों की तरह सीपियों में पलते हैं
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मैं हर हाल में मुस्कुराता रहूँगा
न तुम होश में हो न हम होश में हैं
पहला सा वो ज़ोर नहीं है मेरे दुख की सदाओं में
वो जिन के ज़िक्र से रगों में दौड़ती थीं बिजलियाँ
ये चराग़ बे-नज़र है ये सितारा बे-ज़बाँ है
मुझे लगता है दिल खिंच कर चला आता है हाथों पर
पत्थर के जिगर वालो ग़म में वो रवानी है
मुख़ालिफ़त से मिरी शख़्सियत सँवरती है
वो अपने घर चला गया अफ़्सोस मत करो
सर-ए-राह कुछ भी कहा नहीं कभी उस के घर मैं गया नहीं
ख़ुदा की इतनी बड़ी काएनात में मैं ने
मिरी नज़र में ख़ाक तेरे आइने पे गर्द है