वो चाँदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है
बहुत अज़ीज़ हमें है मगर पराया है
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रेत भरी है इन आँखों में आँसू से तुम धो लेना
मेरी आँखों में तिरे प्यार का आँसू आए
इजाज़त हो तो मैं इक झूट बोलूँ
मैं चाहता हूँ कि तुम ही मुझे इजाज़त दो
बे-तहाशा सी ला-उबाली हँसी
जब रात की तन्हाई दिल बन के धड़कती है
तुम मुझे छोड़ के जाओगे तो मर जाऊँगा
ख़ुदा हम को ऐसी ख़ुदाई न दे
उस ने छू कर मुझे पत्थर से फिर इंसान किया
ये शबनमी लहजा है आहिस्ता ग़ज़ल पढ़ना
मैं तमाम तारे उठा उठा के ग़रीब लोगों में बाँट दूँ
ये चराग़ बे-नज़र है ये सितारा बे-ज़बाँ है