वो चाँदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है
बहुत अज़ीज़ हमें है मगर पराया है
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ख़ून पत्तों पे जमा हो जैसे
अज़्मतें सब तिरी ख़ुदाई की
लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में
किसी की याद में पलकें ज़रा भिगो लेते
मिरी ज़बाँ पे नए ज़ाइक़ों के फल लिख दे
मैं यूँ भी एहतियातन उस गली से कम गुज़रता हूँ
तुम मोहब्बत को खेल कहते हो
भूल शायद बहुत बड़ी कर ली
यूँही बे-सबब न फिरा करो कोई शाम घर में रहा करो
उदास आँखों से आँसू नहीं निकलते हैं
मेरे दिल की राख कुरेद मत इसे मुस्कुरा के हवा न दे
हँसो आज इतना कि इस शोर में