वो इत्र-दान सा लहजा मिरे बुज़ुर्गों का
रची-बसी हुई उर्दू ज़बान की ख़ुश्बू
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नज़र से गुफ़्तुगू ख़ामोश लब तुम्हारी तरह
रात तेरी यादों ने दिल को इस तरह छेड़ा
गुफ़्तुगू उन से रोज़ होती है
तुम्हारे साथ ये मौसम फ़रिश्तों जैसा था
हम भी दरिया हैं हमें अपना हुनर मालूम है
दिल उजड़ी हुई एक सराए की तरह है
नाम पानी पे लिखने से क्या फ़ाएदा
इतनी मिलती है मिरी ग़ज़लों से सूरत तेरी
ख़ुदा की इतनी बड़ी काएनात में मैं ने
कोई फूल धूप की पत्तियों में हरे रिबन से बँधा हुआ
मिरे साथ चलने वाले तुझे क्या मिला सफ़र में
वो चाँदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है