और कुछ देर सितारो ठहरो
उस का व'अदा है ज़रूर आएगा
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अपनी रुस्वाई का एहसास तो अब कुछ भी नहीं
रानाई-ए-कौनैन से बे-ज़ार हमीं थे
मैं जिस रफ़्तार से तूफ़ाँ की जानिब बढ़ता जाता हूँ
गर्मियाँ हब्स रात तारीकी
कल रात कुछ अजीब समाँ ग़म-कदे में था
इश्क़ की दुनिया में इक हंगामा बरपा कर दिया
जब भी ख़ल्वत में वो याद आएगा
फ़ुसून-ए-शेर से हम उस मह-ए-गुरेज़ाँ को
वफ़ा का अहद था दिल को सँभालने के लिए
अब कहो कारवाँ किधर को चले
इस तरह आते हैं अंजाम-ए-मोहब्बत के ख़याल
बला से कुछ हो हम 'एहसान' अपनी ख़ू न छोड़ेंगे