हम हक़ीक़त हैं तो तस्लीम न करने का सबब
हाँ अगर हर्फ़-ए-ग़लत हैं तो मिटा दो हम को
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'एहसान' अपना कोई बुरे वक़्त का नहीं
रेल ने सीटी बजाई 'शोर' ओ 'दामन' चल दिए
गर्मियाँ हब्स रात तारीकी
दिल की शगुफ़्तगी के साथ राहत-ए-मय-कदा गई
बख़्श दी हाल-ए-ज़बूँ ने जल्वा-सामानी मुझे
हवा के सय्याल बाज़ुओं पर घटा के शब-रंग कारवाँ हैं
सोज़-ए-जुनूँ को दिल की ग़िज़ा कर दिया गया
इश्क़ को तक़लीद से आज़ाद कर
गदा हूँ मुझ को लेकिन दौलत-ए-कौनैन हासिल है
तौबा की नाज़िशों पे सितम ढा के पी गया
ख़ाक से सैंकड़ों उगे ख़ुर्शीद
जीने के लिए जो मर रहे हैं