किस किस की ज़बाँ रोकने जाऊँ तिरी ख़ातिर
किस किस की तबाही में तिरा हाथ नहीं है
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मैं जिस रफ़्तार से तूफ़ाँ की जानिब बढ़ता जाता हूँ
'एहसान' ऐसा तल्ख़ जवाब-ए-वफ़ा मिला
आया नहीं है राह पे चर्ख़-ए-कुहन अभी
वफ़ा का अहद था दिल को सँभालने के लिए
कभी कभी जो वो ग़ुर्बत-कदे में आए हैं
हौज़ में गिर पड़ा गुलाब का फूल
शाम और रस्ते में रेवड़ के गुज़रने से ग़ुबार
यूँ उस पे मिरी अर्ज़-ए-तमन्ना का असर था
चूम कर उस बुत की पेशानी को पछताना पड़ा
जब किसी की याद आ कर तिलमिला जाता है दिल
तुम सादा-मिज़ाजी से मिटे फिरते हो जिस पर
और कुछ देर सितारो ठहरो