कुछ अपने साज़-ए-नफ़स की न क़द्र की तू ने
कि इस रबाब से बेहतर कोई रबाब न था
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Gulzar
Parveen Shakir
Rahat Indori
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Anwar Masood
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(709) Peoples Rate This
आया नहीं है राह पे चर्ख़-ए-कुहन अभी
जब कोई जुगनू चमकता है अँधेरी रात में
दिल की रग़बत है जब आप ही की तरफ़
जब रुख़-ए-हुस्न से नक़ाब उठा
दमक रहा है जो नस नस की तिश्नगी से बदन
कल रात कुछ अजीब समाँ ग़म-कदे में था
इस तरह आते हैं अंजाम-ए-मोहब्बत के ख़याल
ये कौन हँस के सेहन-ए-चमन से गुज़र गया
देहली का इक रईस ब-हंगाम-ए-जाँ-कनी
वफ़ाएँ कर के जफ़ाओं का ग़म उठाए जा
बला से कुछ हो हम 'एहसान' अपनी ख़ू न छोड़ेंगे