लोग यूँ देख के हँस देते हैं
तू मुझे भूल गया हो जैसे
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Gulzar
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Wasi Shah
Jaun Eliya
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Habib Jalib
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ये कौन हँस के सेहन-ए-चमन से गुज़र गया
कुछ लोग जो सवार हैं काग़ज़ की नाव पर
जब किसी की याद आ कर तिलमिला जाता है दिल
तुम सादा-मिज़ाजी से मिटे फिरते हो जिस पर
जबीं की धूल जिगर की जलन छुपाएगा
बला से कुछ हो हम 'एहसान' अपनी ख़ू न छोड़ेंगे
दोपहर होने को है सन्ना गया जंगल तमाम
कभी कभी जो वो ग़ुर्बत-कदे में आए हैं
हम हक़ीक़त हैं तो तस्लीम न करने का सबब
जब कोई जुगनू चमकता है अँधेरी रात में
आज उस ने हँस के यूँ पूछा मिज़ाज
अपनी रुस्वाई का एहसास तो अब कुछ भी नहीं